Sunday, October 25, 2009

मनुष्य

ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति मनुष्य
कही खो गया है
अपने ही दिए नामो में
इस कदर उलझा हुआ है
खीझ ,बैचेनी ,तमतमाहट
और रेत तन जो रह गया है

विश्व की सुन्दरता ,
प्राक्रतिक सुषमा अब मन को
लुभाती नही है

भावो की मृदुलता
मन की कोमलता
पागलो की निशानी है

ये भाव नैतिकता की कहानी है
नैतिकता गए बीते जमाने
की बातें है

२१वी सदी फास्ट ट्रेक ज़माना
सीखो दुसरो की जेब से कैसे
है पैसे आना

Thursday, October 22, 2009

बालक

हर पल मांगे ध्यान तुम्हारा
ध्यान न दो ,रो -रो घर भरे सारा
नटखट बचपन को पहचानो
बालक की जरुरत को जानो

मै छोटा सा बालक हू
माँ का आँचल ही पहचानू
कदमो की आहात को जानू
साँसों की खुशबु को पहचानू

माँ की गोद लगे है प्यारी
माँ भी देख मुझे बलिहारी
क्रेत्च मुझे दुश्मन है दिखता
खेल विद्यालय मुझे डराता

माँ के हाथो की सरगर्मी
चुपके से yu मुझे बताये
छोड़ crech में तुझको बच्चू
अब माँ अपने ऑफिस जाए

मै हू नन्हा सा शैतान
माँ की हरकत की मुझे जान
गोदी मै ही शुरू रोना
पकड़ के पल्ला और चिपकाना

कोई चीज मुझे न भाये
मैडम की aakhe डराए
subak सुबक कर मै रूऊ
माँ के आने की बात मई जोहू

Tuesday, October 20, 2009

सोचो सोचो सोचो ......

औलाद ने मुह मोड़ा
ये नौबत क्यो आई
jhaanko अपने अंदर
संस्कार देने में कमी आई

पैदा करना है आसान
पालन करना मुश्किल
ठीक उसी तरह से जैसी
मरना है आसान
पर जीना है मुश्किल
हाय तौबा मचा रहा है
आज अजानी इंसान
पैदा करने की कीमत मांगे
बच्चो से इंसान
सोचो सोचो .....
esaa क्यो

Saturday, July 25, 2009

देश की धरती


देश की धरती

मुझको बता ऐ देश की धरती तुझे मै क्या कहूँ
अपने मन की ये व्यथा तुझसे कहूँ या न कहूँ
मुझको बता........

तेरी जीत का गौरव तिरंगा
बनके शोभा रह गया
विश्व पटल पर ओज तेरा
मृद भांड बनकर दह गया
मानसूनी देश की इसे बदलती है ऋतू
मुझको बता ..........

इस धारा के स्वर्ग में
संग मौत के साये चले
मन की लगन तन की खुशी
संग -संग चिताओ के जल गए
शमशान में बैटकर क्या बात उन्नति की करूं
मुझको बता .............

देवता तरसे जहाँ पर
जनम पाने के लिए
वहां भूखा जीवन रो रहा है
एक -एक दाने के लिए
आज हर चौराहे पर तेरी लुट रही है आबरू
मुझको बता................

Tuesday, July 21, 2009

vishwas


आज ईश्वर कही छुप गया है
ऐ हवा !
जाके तुम ढूढो
अगर कही मिल जाए तो
पैगाम मेरा तुम ये देना
कलयुग में सब कुछ बदल गया
साँस लेना मुश्किल हो गया
हर अर्थ का अनर्थ हो गया
मसलन साधू भोगी हो गया
दिल से साफ सच्चे इंसानों को पागल कहते है
अब वास्तव में तुम्हारे अवतार की जरुरत है
मिटटी पानी तो पहले बिके
अब हवा की बारी है
खून बिका गुर्दे बिके
भगवन बिका धर्म बिका
अब बिकने को कुछ न बचा
मेरा दिल चुपके चुपके रोया
कि इस घोर कलियुग में
रोने की भी कीमत चुकानी पड़ती है
मरने के बाद शमशान की कीमत चुकानी पड़ती है

ab

Monday, June 22, 2009

क्या मुझको जन्म दोगी माँ?


वेद पुराण सभी कहते हैं, तू तो भगवान है
तू ही अम्बा, तू जगदम्बा, तू शक्ति महान है
इस दुनिया को मैं भी देखूं, ये मेरा अरमान है
मेरी हत्या मत कर माता, मैं तेरी संतान हूँ
बेटी पूछे माँ से आज, क्यों ना तुझे स्वीकार हूँ
जन्म से पहले मारे मुझको
मेरा क्या अपराध है
दिल ही दिल में घुटती हूँ मैं
पूंछू क्या भगवान से
मेरा ईश्वर मुझसे रूठा
किसको करूं शिकायत मैं
मैं भी जीना चाहती हूँ माँ
मेरी अच्छी प्यारी माँ, मेरी बहुत दुलारी माँ
मुझको भी जीवन दे दो, मैं भी जीना चाहती माँ
लड़कों से भी आगे बढ़कर, मैं तुझको दिखलाऊंगी
धरती जैसी धीरज मुझमे, चंदा जैसी शीतलता
सूरज जैसा तेज़ है मुझमे, नदियों जैसी चंचलता
लहर-लहर लहराऊँ ऐसे, जैसे फूलों की डाली
बोली ऐसी मेरी जैसे कोयल गाती मतवाली
जितना गर्व हिमालय में है, उतनी मैं भी गर्वीली
जितनी कोमल, उतनी हठीली, उतनी ही मैं शर्मीली
अब बोलो माँ ---
क्या अब भी मुझको मार डालोगी
जन्म से पहले ही, मेरा गला घोट दोगी
अपनी इस बेटी को माँ, क्या ममता का अंचल दोगी
क्या मुझको जन्म दोगी माँ?

Sunday, June 21, 2009

दायरों से निकालना चाहती हूँ --


रिश्तों के दायरे में
सिमटती मानवता को
दायरों से निकालना चाहती हूँ
क्योंकि --
मैं जानती हूँ कि एक दिन
ऐसी सीमाओं में
कदम-दर-कदम की बाधाओं में
गुब्बारे की बंद हवाओं की तरह
भीतरी परिवेश से
कुछ नया करने का आवेश सड़ जाएगा
मानवता का भाव
कहीं रूंध जाएगा