आज ईश्वर कही छुप गया है
ऐ हवा ! जाके तुम ढूढो
अगर कही मिल जाए तो
पैगाम मेरा तुम ये देना
कलयुग में सब कुछ बदल गया
साँस लेना मुश्किल हो गया
हर अर्थ का अनर्थ हो गया
मसलन साधू भोगी हो गया
दिल से साफ सच्चे इंसानों को पागल कहते है
अब वास्तव में तुम्हारे अवतार की जरुरत है
मिटटी पानी तो पहले बिके
अब हवा की बारी है
खून बिका गुर्दे बिके
भगवन बिका धर्म बिका
अब बिकने को कुछ न बचा
मेरा दिल चुपके चुपके रोया
कि इस घोर कलियुग में
रोने की भी कीमत चुकानी पड़ती है
मरने के बाद शमशान की कीमत चुकानी पड़ती है
ab
ऐ हवा ! जाके तुम ढूढो
अगर कही मिल जाए तो
पैगाम मेरा तुम ये देना
कलयुग में सब कुछ बदल गया
साँस लेना मुश्किल हो गया
हर अर्थ का अनर्थ हो गया
मसलन साधू भोगी हो गया
दिल से साफ सच्चे इंसानों को पागल कहते है
अब वास्तव में तुम्हारे अवतार की जरुरत है
मिटटी पानी तो पहले बिके
अब हवा की बारी है
खून बिका गुर्दे बिके
भगवन बिका धर्म बिका
अब बिकने को कुछ न बचा
मेरा दिल चुपके चुपके रोया
कि इस घोर कलियुग में
रोने की भी कीमत चुकानी पड़ती है
मरने के बाद शमशान की कीमत चुकानी पड़ती है
ab
6 comments:
उषा जी
बहुत सही कहा है आज सबकुछ बिकाऊ है.
सुन्दर सामयिक कविता
टाइपिंग की अशुद्धियो को संशोधित कर ले तो बेहतर होगा.
रचना बहुत अच्छी.
बहुत खूब। अच्छा भाव। देवी नागरानी कहतीं हैं कि-
बाजार बन गए हैं चाहत वफा मुहब्बत
रिश्ते तमाम आखिर सिक्कों में ढ़ल रहे हैं
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
achchi rachna hai
sagar.blogspot.com
suman3360@yahoo.com
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कलयुग में सब कुछ बदल गया
साँस लेना मुश्किल हो गया
हर अर्थ का अनर्थ हो गया
मसलन साधू भोगी हो गया
दिल से साफ सच्चे इंसानों को पागल कहते है
अब वास्तव में तुम्हारे अवतार की जरुरत है
कविता सुन्दर और भावपूर्ण है बहुत अच्छा
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