Thursday, October 22, 2009

बालक

हर पल मांगे ध्यान तुम्हारा
ध्यान न दो ,रो -रो घर भरे सारा
नटखट बचपन को पहचानो
बालक की जरुरत को जानो

मै छोटा सा बालक हू
माँ का आँचल ही पहचानू
कदमो की आहात को जानू
साँसों की खुशबु को पहचानू

माँ की गोद लगे है प्यारी
माँ भी देख मुझे बलिहारी
क्रेत्च मुझे दुश्मन है दिखता
खेल विद्यालय मुझे डराता

माँ के हाथो की सरगर्मी
चुपके से yu मुझे बताये
छोड़ crech में तुझको बच्चू
अब माँ अपने ऑफिस जाए

मै हू नन्हा सा शैतान
माँ की हरकत की मुझे जान
गोदी मै ही शुरू रोना
पकड़ के पल्ला और चिपकाना

कोई चीज मुझे न भाये
मैडम की aakhe डराए
subak सुबक कर मै रूऊ
माँ के आने की बात मई जोहू

3 comments:

M VERMA said...

बालक के मन को परत दर परत खोलती बहुत खूबसूरत रचना

संगीता पुरी said...

अच्‍छी रचना है .. बधाई !!

के सी said...

इन दिनों ऐसी गेय कविताएं काम ही देखने को मिलती है, आप निरंतर लिख रही है बड़ी मेहनत का काम है. बधाई !