देश की धरती
मुझको बता ऐ देश की धरती तुझे मै क्या कहूँ
अपने मन की ये व्यथा तुझसे कहूँ या न कहूँ
मुझको बता........
तेरी जीत का गौरव तिरंगा
बनके शोभा रह गया
विश्व पटल पर ओज तेरा
मृद भांड बनकर दह गया
मानसूनी देश की इसे बदलती है ऋतू
मुझको बता ..........
इस धारा के स्वर्ग में
संग मौत के साये चले
मन की लगन तन की खुशी
संग -संग चिताओ के जल गए
शमशान में बैटकर क्या बात उन्नति की करूं
मुझको बता .............
देवता तरसे जहाँ पर
जनम पाने के लिए
वहां भूखा जीवन रो रहा है
एक -एक दाने के लिए
आज हर चौराहे पर तेरी लुट रही है आबरू
मुझको बता................
मुझको बता ऐ देश की धरती तुझे मै क्या कहूँ
अपने मन की ये व्यथा तुझसे कहूँ या न कहूँ
मुझको बता........
तेरी जीत का गौरव तिरंगा
बनके शोभा रह गया
विश्व पटल पर ओज तेरा
मृद भांड बनकर दह गया
मानसूनी देश की इसे बदलती है ऋतू
मुझको बता ..........
इस धारा के स्वर्ग में
संग मौत के साये चले
मन की लगन तन की खुशी
संग -संग चिताओ के जल गए
शमशान में बैटकर क्या बात उन्नति की करूं
मुझको बता .............
देवता तरसे जहाँ पर
जनम पाने के लिए
वहां भूखा जीवन रो रहा है
एक -एक दाने के लिए
आज हर चौराहे पर तेरी लुट रही है आबरू
मुझको बता................