Saturday, July 25, 2009

देश की धरती


देश की धरती

मुझको बता ऐ देश की धरती तुझे मै क्या कहूँ
अपने मन की ये व्यथा तुझसे कहूँ या न कहूँ
मुझको बता........

तेरी जीत का गौरव तिरंगा
बनके शोभा रह गया
विश्व पटल पर ओज तेरा
मृद भांड बनकर दह गया
मानसूनी देश की इसे बदलती है ऋतू
मुझको बता ..........

इस धारा के स्वर्ग में
संग मौत के साये चले
मन की लगन तन की खुशी
संग -संग चिताओ के जल गए
शमशान में बैटकर क्या बात उन्नति की करूं
मुझको बता .............

देवता तरसे जहाँ पर
जनम पाने के लिए
वहां भूखा जीवन रो रहा है
एक -एक दाने के लिए
आज हर चौराहे पर तेरी लुट रही है आबरू
मुझको बता................

Tuesday, July 21, 2009

vishwas


आज ईश्वर कही छुप गया है
ऐ हवा !
जाके तुम ढूढो
अगर कही मिल जाए तो
पैगाम मेरा तुम ये देना
कलयुग में सब कुछ बदल गया
साँस लेना मुश्किल हो गया
हर अर्थ का अनर्थ हो गया
मसलन साधू भोगी हो गया
दिल से साफ सच्चे इंसानों को पागल कहते है
अब वास्तव में तुम्हारे अवतार की जरुरत है
मिटटी पानी तो पहले बिके
अब हवा की बारी है
खून बिका गुर्दे बिके
भगवन बिका धर्म बिका
अब बिकने को कुछ न बचा
मेरा दिल चुपके चुपके रोया
कि इस घोर कलियुग में
रोने की भी कीमत चुकानी पड़ती है
मरने के बाद शमशान की कीमत चुकानी पड़ती है

ab