देश की धरती
मुझको बता ऐ देश की धरती तुझे मै क्या कहूँ
अपने मन की ये व्यथा तुझसे कहूँ या न कहूँ
मुझको बता........
तेरी जीत का गौरव तिरंगा
बनके शोभा रह गया
विश्व पटल पर ओज तेरा
मृद भांड बनकर दह गया
मानसूनी देश की इसे बदलती है ऋतू
मुझको बता ..........
इस धारा के स्वर्ग में
संग मौत के साये चले
मन की लगन तन की खुशी
संग -संग चिताओ के जल गए
शमशान में बैटकर क्या बात उन्नति की करूं
मुझको बता .............
देवता तरसे जहाँ पर
जनम पाने के लिए
वहां भूखा जीवन रो रहा है
एक -एक दाने के लिए
आज हर चौराहे पर तेरी लुट रही है आबरू
मुझको बता................
मुझको बता ऐ देश की धरती तुझे मै क्या कहूँ
अपने मन की ये व्यथा तुझसे कहूँ या न कहूँ
मुझको बता........
तेरी जीत का गौरव तिरंगा
बनके शोभा रह गया
विश्व पटल पर ओज तेरा
मृद भांड बनकर दह गया
मानसूनी देश की इसे बदलती है ऋतू
मुझको बता ..........
इस धारा के स्वर्ग में
संग मौत के साये चले
मन की लगन तन की खुशी
संग -संग चिताओ के जल गए
शमशान में बैटकर क्या बात उन्नति की करूं
मुझको बता .............
देवता तरसे जहाँ पर
जनम पाने के लिए
वहां भूखा जीवन रो रहा है
एक -एक दाने के लिए
आज हर चौराहे पर तेरी लुट रही है आबरू
मुझको बता................
8 comments:
शमशान में बैटकर क्या बात उन्नति की करू
मुझको बता .............
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बहुत सुन्दर भाव
अच्छी कविता
बढिया भाव .. सुंदर रचना !!
भावपूर्ण रचना ,
आभार !
बेहद भावपूर्ण और संवेदनशील रचना
usha ji prnaam
aap ke blog par aaj pahli baar aaya hun mujhe bhut khed ho raha hai ki itne deen mai aap ki itni bahumuly krtiyo se door kaise raha aap ki rachnaao me dard bhara hai desh ka
वहां भूखा जीवन रो रहा है
एक -एक दाने के लिए
आज हर चौराहे पर तेरी लुट रही है आबरू
mera prnaam swikaar kare
Aapki soch ko pranam karta hoon.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
व्यथा तो है. किन्तु जीत के गौरव तिरंगे को केवल शोभा की वस्तु न बनने देने के लिए प्रयासरत रहना होगा.
Thanks to all
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