Tuesday, June 9, 2020

आज का विचार



जीवन को व्यापक रूप में देखना- जीवन की सच्चाइयाँ,  जीवन की जरूरतें,  जीवन का अंतिम लक्ष्य क्या है?, आखिर जीवन की कैसी प्रकिया हो जिससे संतुष्टि मिले? मैं अपने आप से साक्षात्कार करना चाहती हूँ,  मेरा स्वयं का वजूद क्या है,  कोई सफल तो कोई असफल क्यों है? संशय है कि इन प्रश्नों के उत्तर मिल पाएँगे?बहुत मुश्किल प्रश्न है ।
एक बात तो तय है , इस संसार में हर कोई अकेला आता है,  अकेला जाता है,  हर कोई अपने आप में विशिष्ट है, सबसे हट कर है, अपने आप में अनोखा । हर किसी के प्रश्न उत्तर अलग अलग होंगे । चलो आज तो विचारों के बवंडर ने बड़ा उत्पाद मचाया है,  पर  एक दिशा तो मिली, ऐसा मेरा विश्वास  बना है ।
उषा


9जून 2020
आज से एक नई दृष्टि नई सोच के साथ जीवन का आरंभ करने जा रही हूँ । बहुत दिनों बाद जमी हुई परतों में हलचल हुई है । एकाएक लगने लगा समय बहुत कम रह गया । बहुत सारी बातें जीवन में बदली है । बहुत सारे खोल उतरे हैं । अब मन बहुत कुछ छुपी हुई परतों को उघाडना चाहता है ।
आज का दिन बहुत खास है ।
उषा 

Saturday, February 10, 2018

अब तक मैं कुछ चुप बैठी थी 

फ़िर कुछ कहने का मन आया 



 

Sunday, August 1, 2010

ज्ञान का आरम्भ ही विज्ञानं

आरम्भ से मानवता ,विज्ञानं के साथ चली
इतिहास साक्षी हे तब से
सभ्याताए फूली फली

विज्ञानं मानवता का मिलन
विकास की सोगात ह
बहुत दूर की नहीं ये
अभी द्वापर की युग की बात है

जहा इसी मिलन से था
अदभुत उजाला
मनु की संतान ने स्वर्ग की दुरी को था
सीढियों से था नाप डाला

वेदों की ज्ञानता को हमने आजमाया
मिटटी को जो सोना बना दे एक पल में
हमने एक ऐसा भी था पारस बनाया
इस ज्ञान के आधार पर
भारत को जगत गुरु बनाया

पहले मिलन फिर बिछोह
वक्त का दस्तूर है
इंसान अपनी इंसानी
फितरतो से मजबूर है

अपने अहम् की में मनु
अकेला चल पडा
सृजनात्मकता का ओज फिर
परम्परा में ढल गया

वक्त के साथ परम्पराए
वृद्ध जर्जर होने लगी
रीती रिवाजों की आड़ में
मनुष्यता खोने लगी

विज्ञानं भी मनु के बिना
महज यंत्र एक बनने लगा
वैश्विक तापन के रूप में
हर जीवन में जलने लगा

आज हम अपने
चिंतन को फिर आजमाए
और सार्थक प्रयास करके
विज्ञ मानवता को साथ लाये .........

Friday, May 7, 2010

प्रार्थना

हम है बालक नादाँ
दिल में हमारे वफ़ा हो
सच को देखे , सच को समझे
सच को ईश माने
सुंदर धरा
विस्तृत गगन
ऐसा हो हमारा मन
कोयल की कू कू
मोर की पिहू
हम सदा गुनगुनाये
इस धरा को
आओ मिलकर
हम स्वर्ग बनाये
उड़ते पक्षी
बहता पानी
सुंदरता की
कहता कहानी
आओ खो जाये ........

Sunday, October 25, 2009

मनुष्य

ईश्वर की सर्वोत्कृष्ट कृति मनुष्य
कही खो गया है
अपने ही दिए नामो में
इस कदर उलझा हुआ है
खीझ ,बैचेनी ,तमतमाहट
और रेत तन जो रह गया है

विश्व की सुन्दरता ,
प्राक्रतिक सुषमा अब मन को
लुभाती नही है

भावो की मृदुलता
मन की कोमलता
पागलो की निशानी है

ये भाव नैतिकता की कहानी है
नैतिकता गए बीते जमाने
की बातें है

२१वी सदी फास्ट ट्रेक ज़माना
सीखो दुसरो की जेब से कैसे
है पैसे आना

Thursday, October 22, 2009

बालक

हर पल मांगे ध्यान तुम्हारा
ध्यान न दो ,रो -रो घर भरे सारा
नटखट बचपन को पहचानो
बालक की जरुरत को जानो

मै छोटा सा बालक हू
माँ का आँचल ही पहचानू
कदमो की आहात को जानू
साँसों की खुशबु को पहचानू

माँ की गोद लगे है प्यारी
माँ भी देख मुझे बलिहारी
क्रेत्च मुझे दुश्मन है दिखता
खेल विद्यालय मुझे डराता

माँ के हाथो की सरगर्मी
चुपके से yu मुझे बताये
छोड़ crech में तुझको बच्चू
अब माँ अपने ऑफिस जाए

मै हू नन्हा सा शैतान
माँ की हरकत की मुझे जान
गोदी मै ही शुरू रोना
पकड़ के पल्ला और चिपकाना

कोई चीज मुझे न भाये
मैडम की aakhe डराए
subak सुबक कर मै रूऊ
माँ के आने की बात मई जोहू