Sunday, August 1, 2010

ज्ञान का आरम्भ ही विज्ञानं

आरम्भ से मानवता ,विज्ञानं के साथ चली
इतिहास साक्षी हे तब से
सभ्याताए फूली फली

विज्ञानं मानवता का मिलन
विकास की सोगात ह
बहुत दूर की नहीं ये
अभी द्वापर की युग की बात है

जहा इसी मिलन से था
अदभुत उजाला
मनु की संतान ने स्वर्ग की दुरी को था
सीढियों से था नाप डाला

वेदों की ज्ञानता को हमने आजमाया
मिटटी को जो सोना बना दे एक पल में
हमने एक ऐसा भी था पारस बनाया
इस ज्ञान के आधार पर
भारत को जगत गुरु बनाया

पहले मिलन फिर बिछोह
वक्त का दस्तूर है
इंसान अपनी इंसानी
फितरतो से मजबूर है

अपने अहम् की में मनु
अकेला चल पडा
सृजनात्मकता का ओज फिर
परम्परा में ढल गया

वक्त के साथ परम्पराए
वृद्ध जर्जर होने लगी
रीती रिवाजों की आड़ में
मनुष्यता खोने लगी

विज्ञानं भी मनु के बिना
महज यंत्र एक बनने लगा
वैश्विक तापन के रूप में
हर जीवन में जलने लगा

आज हम अपने
चिंतन को फिर आजमाए
और सार्थक प्रयास करके
विज्ञ मानवता को साथ लाये .........

2 comments:

अनुनाद सिंह said...

स्वागतम् !

(पता नहीं आपने जानबूझकर या गलती से सब जगह 'विज्ञान' को 'विज्ञानं' लिखा है।

M VERMA said...

आज हम अपने
चिंतन को फिर आजमाए
सुन्दर आह्वान
और फिर
पहले मिलन फिर बिछोह
वक्त का दस्तूर है
सत्य है
आप काफी दिनों बाद कोई रचना लेकर आयीं. स्वागत है ...